चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन !


डॉ. सत्यवान सौरभ


 


चीरहरण को देख कर, दरबारी सब मौन ! 


चीरहरण को देख कर,


दरबारी सब मौन !


प्रश्न करे अँधराज पर,


विदुर बने वो कौन !!


★★★


राम राज के नाम पर,


कैसे 'हुए' सुधार !


घर-घर दुःशासन खड़े,


रावण है हर द्वार !!


★★★


कदम-कदम पर हैं' खड़े,


'लपलप करे' सियार !


जाये तो जाये कहाँ,


हर बेटी लाचार !!


★★★


बची कहाँ है आजकल,


लाज-धर्म की डोर !


पल-पल लुटती बेटियां,


कैसा कलयुग घोर !!


★★★


वक्त बदलता दे रहा,


कैसे-कैसे घाव !


माली बाग उजाड़ते,


मांझी 'खोये' नाव !!


★★★


घर-घर में रावण हुए,


चौराहे पर कंस !


बहू-बेटियां झेलती,


नित शैतानी दंश !!


★★★


वही खड़ी है द्रौपदी,


और बढ़ी है पीर !


दरबारी सब मूक है,


कौन बचाये चीर !!


★★★


छुपकर बैठे भेड़िये,


लगा रहे हैं दाँव !


बच पाए कैसे सखी,


अब भेड़ों का गाँव !!