अपने बेगाने हुए, दुश्मन के घर मित्र !!

अपने बेगाने हुए, दुश्मन के घर मित्र !!



प्रियंका सौरभ


 


★★★


हाथ मिलाते गैर से, अपनों से बेजार ।


सौरभ रिश्ते हो गए, गिरगिट से मक्कार ।।


★★★


अपनों से जिनकी नहीं, बनती सौरभ बात !


ढूंढ रहे वो आजकल, गैरों में औकात !!


★★★★


उनका क्या विश्वास अब, उनसे क्या हो बात !


सौरभ अपने खून से, कर बैठे जो घात !!


★★★


चूहा हल्दी गाँठ पर, फुदक रहा दिन-रात !


आहट है ये मौत की, या कोई सौगात !!


★★★


टूट रहे परिवार हैं, बदल रहे मनभाव !


प्रेम जताते गैर से, अपनों से अलगाव ।।


★★★


गलती है ये खून की, या संस्कारी भूल !


अपने काँटों से लगे, और पराये फूल !!


★★★


ये भी कैसा प्यार है, ये कैसी है रीत !


खाये उस थाली करे, छेद आज के मीत !!


★★★


चारों ओर गिरे हुए, रिश्ते लाज चरित्र !


अपने बेगाने हुए, दुश्मन के घर मित्र !!


★★★


सीखा मैंने देर से, सहकर लाखों चोट !


लोग कौन से हैं खरे,और कहाँ है खोट !!


★★★


राय गैर की ले रखे, जो अपनों से बैर !


अपने हाथों काटते, वो खुद अपने पैर !!


★★★


ये भी कैसा दौर है, सौरभ कैसे तौर !


अपनों से धोखा करें, गले लगाते और !!


★★★


अपनों की जड़ खोदते, होता नहीं मलाल !


हाथ मिलाकर गैर से, करते लोग कमाल !!


★★★


अपने अब अपने कहाँ, बन बैठे गद्दार।


मौका ढूंढें कर रहे, छुप-छुपकर वो वार !!


★★★


आज नहीं तो कल बनें, उनकी राह दुश्वार।


जो रिश्तों का खून कर, करें गैर से प्यार !!