युवा देश में ही छोटे-मोटे कामों में अवसर तलाशें
हालांकि इस समय देश के युवाओं में रोजगार की तलाश में विदेश भागने का रुझान बढ़ा हुआ है और वहां जाकर पढ़े-लिखे युवा भी उन कामों को करने के लिए विवश हो रहे हैं जिन्हें वे भारत में छोटा काम कह कर करने से इंकार कर देते थे हालांकि काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता। _ 'मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। उनके पिता पेशे से नाविक थे और पढ़े-लिखे भी नहीं थे। अपनी शुरूआती शिक्षा जारी रखने के लिए कलाम साहब ने अखबार भी बेचे परंतु अपनी मेहनत और लगन के दम पर वह देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचे। इस समय जबकि कोरोना काल में बेरोजगारी के चलते लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है, मजदूर ही बेरोजगार नहीं हुए बल्कि शिक्षित युवाओं पर भी इसकी मार पड़ी है और पढ़े-लिखे युवा भी अपनी उच्च शिक्षा को रोजगार प्राप्ति का मापदंड न बनाते हुए समाज की दृष्टि में 'छोटे-मोटे' समझे जाने वाले काम खुशी-खुशी कर रहे हैं।
* दक्षिण भारत में तिरुवनंतपुरम में आटो मोबाइल इंजीनियर कृष्ण कुमार के.पी. लॉकडाऊन के कारण एक आटो डीलरशिप में नौकरी गंवाने के बाद 'मनरेगा' के अंतर्गत काम कर रहे हैं।
* बैचलर आफ बिजनैस एडमिनिस्ट्रेशन की शिक्षा प्राप्त एक युवक नोएडा से अपने घर बुलंदशहर लौट कर मनरेगा में मजदूरी कर रहा है।
* मेरठ के परीक्षितगढ़ में रहने वाला एक बी.ए. पास युवक और एक अन्य बी.कॉम तक पढ़े हुए युवक ने अपनी पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए दिहाडी पर मजदूरी शुरू कर दी है। कोझीकोडे में 5 बी.ए. पास युवा मनरेगा के अंतर्गत काम कर रहे हैं।
* गोरखपुर के बालखुर्द पहाड़पुर में रहने वाले आई.टी.आई. की परीक्षा उत्तीर्ण कमलेश पासवान भी मजदूरी करके परिवार पाल रहे हैं।
ये चंद उदाहरण हैं उन युवाओं के जो नौकरी छिन जाने या नौकरी न मिलने के चलते निराश होकर बैठने या विदेशों की ओर भागने की बजाय अपने देश में ही रह कर और अपनी 'शैक्षिक योग्यता' से निम्न माने जाने वाले काम करके परिवार का पालन-पोषण करते हुए उचित अवसर की तलाश कर रहे हैं। क्या पता कल को इनमें से ही कितने युवा तरक्की करके ऊंचे और अधिक जाएंगे। निश्चय ही ऐसे कर्मठ युवा अन्य युवाओं के लिए बेहतर मुकाम पर पहुंच जाएंगे। निश्चय ही ऐसे कर्मठ यवा अन्य युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत से कम नहीं हैं।