भारतीय सिनेमा की बेहतरीन अदाकारा- नरगिस
वैसे तो मुंबईया फिल्मों में कलाकारों का आना जाना लगा रहता है लेकिन इस इंडस्ट्री में ऐसी बहुत कम अदाकाराएं हैं, जिन्होंने अपने जीवंत अभिनय की बदौलत बरसों तक सिने दर्शकों के दिलों पर राज किया है इन अभिनेत्रियों में एक नाम नरगिस का है, जिन्होंने न केवल रोमांटिक बल्कि सामाजिक फिल्मों तक में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और चार दशकों तक लोगों के दिलों में छाई रहीं।
व्यक्तित्व की मालकिन नरगिस का जन्म 1 जून 1929 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ और इनका असली नाम कनीज़ फातिमा रशिद था। इनकी मां जद्दनबाई एक तवायफ थी जो जवानी में बहुत खूबसूरत थीं और उनकी महफिल में बड़े-बड़े फिल्मकार व रईस गाना सुनने आते थे। इस तरह एक मुस्लिम मां जद्दनबाई और हिन्दू पिता उत्तम चंद मोहन चंद की इस बेटी ने सबसे पहले 1935 में एक बाल कलाकार के रूप में तलाश-ए-हक़ फिल्म में काम किया। तब इनके पिता इन्हें तेजस्वनी कहकर बुलाते थे। 1942 में बनी फिल्म 'तमन्ना' से इन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरूआत नरगिस नाम से की और निर्माता निर्देशक महबूब खान ने इन्हें पहली बार अपनी 'तकदीर' में काम करने का मौका दिया। नरगिस की इच्छा डॉक्टर बनने की थी, पर वह पूरी नहीं हो सकी।
नरगिस ने जब निर्माता निर्देशक राजकपूर के साथ फिल्में करनी शुरू की, तब से ये पहली पंक्ति की अदाकारा कही जाने लगीं। ये अपने काम की सर्वाधिक फीस लेती थीं लेकिन फिल्मों में इनकी एन्ट्री सफलता की गारंटी मानी जाती थी। वैसे तो नरगिस ने लगभग 55 फिल्मों में काम किया, जिनमें से ज्यादातर फिल्में सफलता की कसौटी पर मील का पत्थर साबित हुईं। फिल्म आह, आवारा, श्री 420, दीदार, बरसात, पापी, अनहोनी, अम्बर, आशियाना, बेवफा, जान पहचान, लाहौर, आग, हुमायू आदि में इनके अभिनय के कई शेड्स दिखलाई दिए, लेकिन रोमांटिक फिल्में करते समय इनकी जैसी कैमिस्ट्री राजकपूर के साथ रही वैसी किसी अन्य के साथ नहीं बन सकी
कहा जाता है कि राजकपूर जब पहली बार नरगिस को मिलने उनके घर पर गए थे तो वह उस समय पकौड़े तल रही थीं, जिसका बेसन उनके बालों पर भी लगा था। 27 साल बाद राजकपूर ने अपनी फिल्म बॉबी में बेसन वाला वही टच डिंपल कपाडिया पर फिल्माया। करीब 10 सालों तक राजकपूर व नरगिस की जोड़ी को फिल्मी परदे पर देखने वाले असंख्य सिने दर्शक भी चाहते थे कि इन दोनों की जोड़ी आजीवन बनी रहे। उस समय दोनों में काफी नजदीकियां थीं। लेकिन चाहते हुए भी राजकपूर नरगिस को अपनी हमसफर नहीं बना सके क्योंकि वे शादीशुदा थे। वे अक्सर कहते थे कि कृष्णा मेरे बच्चों की मां है लेकिन नरगिस मेरी फिल्मों की मां है।
लेखिका मधु जैन ने अपनी पुस्तक 'फर्स्ट फैमिली ऑफ इंडियन सिनेमा-कर्पूस' में लिखा है कि नरगिस ने अपना दिल, अपनी आत्मा और अपना पैसा, राजकपूर की फिल्मों में लगाना शुरू कर दिया था। यहां तक कि उसने आर.के. स्टूडियों में पैसे की तंगी को देखकर अपने सोने के कंगन तक बेच दिए थे। वर्ष 1957 में नरगिस ने महबूब खां की फिल्म 'मदर इंडिया' में अपनी लाजवाब भूमिका निभाई और उसी फिल्म की शूटिंग के दौरान जब सैट पर अचानक आग लग गई तो फिल्म में नरगिस के बेटे बिरजू बनें अभिनेता सुनील दत्त ने खुद को जोखिम में डालकर नरगिस की जान बचाई और यही क्षण उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना। उस वक्त नरगिस ने कहा था कि अब एक नई नरगिस का जन्म हुआ है।
- इसके बाद 11 मार्च 1958 को नरगिस ने सुनील दत्त के साथ आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली, जिसे गुप्त रखा गयाउस वक्त नरगिस का कैरियर अपने शीर्ष पर था और सुनील दत्त फिल्मों में अपनी पहचान बनाने में जुटे थे। सुनील दत्त के पास कोई महंगी गाड़ी या बंगला आदि नहीं थे बल्कि वह सामान्य से फ्लैट में रहते थे। वहां लिफ्ट तक का बदोबस्त नहीं था। ऐसे में नरगिस ने अपने इस छोटे से घर को स्वर्ग समझकर जिस तरह से गृहस्थ जीवन का पालन किया वह सच में बेमिसाल हैयहां यह बताना जरूरी है कि फिल्मों में आने से पहले सुनील दत्त का वास्तविक नाम बलराज दत्त था और उनका जन्त 6 जून 1929 को पाकिस्तान के झेलम में हुआ था। वे पहले रेडियो सिलोन में बतौर जॉकी काम करते थे। इन्हें 1955 में जब नरगिस से इन्टरव्यू करने को कहा गया तो ये नरगिस के घर पहुंचते ही काफी नर्वस हो गए और अपनी घबराहट में इन्टरव्यू नहीं कर पाएनरगिस ने सुनील दत्त से शादी करने के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था और वह पूरी तरह अपनी घर-गृहस्थी में रम गई थी। ऐसे में अपने भाई अनवर हुसैन व अख्तर हुसैन के कहने पर नरगिस ने 1967 में एक फिल्म 'रात और दिन' में काम किया, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नरगिस के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ अच्छे संबंध थे और वह राज्यसभा की सांसद की नियुक्त हुई थीं। वैसे नरगिस, सुनील दत्त के लिए काफी लक्की पत्नी साबित हुईं, जिसका साथ पाकर सुनील दत्त ने न केवल अपनी कंपनी अजंता आर्ट के बैनर तले फिल्मों का निमार्ण किया, बल्कि कई फिल्मों में हीरो भी बनें। सुनील दत्त ने राजनीति में भी काफी नाम कमाया। वे एक बार मुंबई के शैरिफ चुने गए और फिर लगातार पांच बार कांग्रेस के टिकट पर मुंबई उत्तर पश्चिम की लोकसभा सीट से सांसद भी चुने गएवर्ष 2004 से 2005 तक में वह मनमोहन सरकार के खेल व युवा मामलों के केन्द्रीय मंत्री भी रहे।
नरगिस और सुनील दत्त की तीन संतानों- संजय दत्त, प्रिया दत्त और नम्रता दत्त के बारे में भी कई लोग वाकिफ होंगे। लेकिन पता नहीं वह कौन सी मनहूस घडी थी जब कैंसर की बीमारी ने नरगिस को अपना शिकार बना लिया, जिसके ईलाज के लिए उन्हें अमेरिका ले जाया गया। वहां सुनील दत्त ने दिन रात नरगिस की देख-रेख की, पर कैंसर की नामुराद बीमारी के कारण नरगिस के बाल झड़ गये थे, त्वचा का रंग काला हो गया था और उन्हें बैडसोर भी हो गए थे। ऐसे में उनकी आखिरी तमन्ना अपने बेटे संजय दत्त की पहली फिल्म 'रॉकी' देखने की थी, जिसे राज खोसला ने बनाया थासिनेमा घरों में रिलीज होने से पहले नरगिस ने 20 मिनट तक वह फिल्म देखी और अंततः 51 साल की आयु में 23 मई 1981 को मुंबई के ब्रीच कैंडी हास्पिटल में उनका देहांत हो गया। उनके शव को मुस्लिम तरीके से उनकी मां जद्दन बाई की कब्र के पास दफन कर दिया गया।
नरगिस ने अपने जीवन में कई कीर्तिमान स्थापित किए। वे पहली अभिनेत्री थीं जिन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया। वह संगीतकार और निर्देशक भी थीं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। पुरानी फिल्मों के शौकीन अब जब कभी नरगिस पर फिल्माये गए पुराने व मधुर गानों जैसे- जाने न नज़र, राजा की आएगी की बारात, रसिक बलमा, चूंघट के पट खोल, घर आया मेरा परदेसी, रमैया वस्तावैया, हुए हम जिनके लिए बरबाद, प्यार हुआ इकरार हुआ, उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते आदि को किसी वीडियो अथवा यूट्यूब पर सुनते हैं तो वह भी नरगिस और राजकपूर की स्मृतियों में खो जाते हैं