कोरोना से डरें नहीं, मुकाबला करें
जगदीश चावला
अपने को संक्रमित होने से बचाने के लिए कुछ दिनों तक घरों में अलग रहना जरूरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो सामाजिक दूरी निहायत जरूरी होते हुए भी आज कइयों को मजबूरी लग रही है। घरों में ज्यादा समय तक अकेले न रहने के अभ्यस्त लोगों को एकांतवास पर जिम्मेदारी नहीं बल्कि कैद सरीखा लग रहा है।
इस समय कोरोना के कहर से दुनियाभर के । २सभी देशों में भय व्याप्त है और किसी का भी यह नही सूझ रहा कि कोरोना का अंत कैसे किया जाए? कोरोना वायरस के संक्रमण की महामारी से 188 देशों के करीब डेढ़ अरब से जयादा लोग इस समय घरों में कैद है। इस समय दुनिया में कुल तीस लाख से ज्यादा लोगों के संक्रमित होने की पुष्टि हुई है जिसमें मरने वालों की संख्या दो लाख से ऊपर है।
इस समय 35 से ज्यादा मुल्कों ने अपने यहां बंद यानी लॉकडाउन घोषित किया हुआ है जिसमें आम नागरिकों का जनजीवन, यात्रा और कारोबार सब कुछ प्रभावित हो रहे हैंअमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, स्पेन आदि देशों में लॉकडाउन तोड़ने वालों को जुरमाना लगाने की चेतावनियां भी दी जा रही हैं। गर्ज ये कि जनता कपy की यह लडाई अब लम्बी चलने वाली दिखलाई पड़ रही है।
यह ठीक है कि कोरोना के खिलाफ ताली-थाली के शंखनाद के बाद भी कई लोग कोरोना की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं और वे कोविड -19 को मज़ाक में ले रहे हैं। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि सैनिटाइजेशन के मामले में इटली और अमेरिका हमसे कई गुना आगे हैं फिर भी वहां इस महामारी ने जान-माल को नुकसान पहुंचाने का तांडव मचा रखा है। ऐसे में यदि यह वायरस भारत के निम्न वर्गीय परिवारों को बीमार करने लगा तो मंज़र और भी भयानक होगाइधर वैसे भी हमारा स्वास्थ्य ढांचा इतना कमज़ोर है कि डेंगू जैसी बीमारी भी यहां महामारी बन जाती है। जबकि बचाव के लिए सफाई और सामाजिक दूरी के सिवा कोई दूसरा चारा नही है। बड़ी ओर भयानक बीमारियों के बारें में तो सरकारों भी खुलकर रूख नहीं बतलाती क्योंकि इससे अफरातफरी का माहौल बन जाता है। कोरोना से बड़े दार्शनिक पहले ही कह चुके हैं कि अपने को संक्रमित होने से बचाने के लिए कुछ दिनों तक घरों में अलग रहना ज़रूरी है। दूसरे शब्दों में कहें तो सामाजिक दूरी निहायत जरूरी होते हुए भी आज कइयों को मजबूरी लग रही है। घरों में ज्यादा समय तक अकेले न रहने के अभ्यस्त लोगों को एकांतवास पर जिम्मेदारी नहीं बल्कि कैद सरीखा लग रहा हैकई लोगों के घर ज्यादा वक्त का राशन तक नहीं हैकई लोग घरों में मर जाते हैं तो प्रशासनिक नियमों के मुताबिक पांच-दस से ज्यादा लोग उनके दाह संस्कार में भी शामिल नहीं हो पा रहे। कई इलाकों में दानी लोगों ने लंगर की व्यवस्थाएं की हैं तो कई लोग सूखी रेटियों को पानी में भिगोकर अपने बच्चों को खिलाते नज़र आ रहे हैं। ऐसे में कोरोना की त्रासदी आगे आने वाले समय में क्या गुल खिलाएगी, इस पर कुछ कहा नहीं जा कसता। अभी तो ज्यादातर लोग यह भी नहीं जानते कि लॉकडाउन कब खुलेगा? ऐसे में मुझे ओशो की एक कहानी याद आती है, एक गांव में एक फकीर ___ रहता था। एक रात उसे अपने सामने से एक काली छाया गांव की तरफ भागती नजर आई। उसने छाया से पूछा-तू कौन है? छाया ने कहा कि मैं मौत हूं क्योंकि गांव में महामारी फैलने वाली है। तभी फकीर ने पूछा कि इसमें कितने लोगों को मरना पड़ेगा? तो मौत बोली-बस एक ___ हज़ार लोग मौत वापस लौटी तो फकीर ने फिर पूछा कि तूने तो कहा था कि एक हज़ार लोग मरेंगे लेकिन मरने वालों की तादाद 30 हज़ार क्यों? तो मौत ने कहा कि मैंने तो एक हज़ार ही मारे थे, बाकी तो डर से मर गए। उनसे मेरा कोई संबंध नही।
मतलब यह कि कोरोना की दहशत भले ही कैसी हो, हमें इससे डरना नहीं चाहिए। वैसे भी कहावत है कि जो डर गया सो मर गया।