हर घड़ी तुझमे ही सूरत देखता था
बलजीत सिंह बेनाम
ग़ज़ल
हर घड़ी तुझमे ही सूरत देखता था
सामने मेरे न कोई आईना था
ज़िंदगी में वो कभी हारा नहीं है
सोच कर जो शख्स सबसे बोलता था
बंद सारे हो गए थे दर मगर हाँ
बस ख़ुदा का दर हमेशा से खुला था
पेश वो आता नहीं कैसे अदब से
उम्र में छोटा था मैं रिश्ता बड़ा था
ये बता दे दिल ज़रा इक बेवफ़ा की
याद में तू बेसबब क्योंकर जला था
सम्पर्क सूत्र -103/19 पुरानी कचहरी कॉलोनी, हाँसी