( भावनात्मक - गीत )


( भावनात्मक - गीत )
" तबीयत को लेकर फिर मन
  घबरा रहा है ।
  ऐसे जैसे कहीं दूर सपनों का
  शहर लूटा जा रहा है ।।
      रह-रह के उल्टे-सीधे ख्यालों
      का दरिंदा , अपनी तेग से
      ड़रा रहा है ।
      मेरे मन के राही को अपने
      पथ से भटका रहा है ।।
 धड़कनों का बाज़ीगर कोई
 करतब नहीं दिखा पा रहा है ।
 उसके हाथों में ही जादू का दीया,
 तूफ़ानों से टकरा रहा है ।।
      स्कून की चाहत तो है मगर,
      दिल में कोई शोर मचा रहा है 
      इक अंजान-सा भय, दिल की
      बस्ती में आग लगा रहा है ।।
 अब तो उसी का ही है आसरा ,
 जो भटकों को राह दिखा रहा है ।
 वोहि टालेगा मेरा हर संकट ,
 मधुर-मुस्कान लिए जो अपनी
 जादुई छड़ी मेरे जिस्म को
 छुआ रहा है ।।


(लेखक:- सतपाल मल्हौत्रा )