बेचैन पलों में सहजता की तलाश
जगदीश चावला
कोरोना वायरस जैसी महामारी से प्रायः सभी देश डरे हुए हैं और मौतों के बढ़ते आंकड़े देखकर भयभीत हैं। इटली, अमेरिका, चीन फ्रांस आदि मुल्कों की अपेक्षा भारत में संक्रमण के मरीज भले ही कुछ कम हो लेकिन यहां इस बीमारी को रोकने के लिए पर्याप्त साधन इन देशों के मुकाबले नही हैं। मोदी जी के आहवान पर लोगों ने एक दिन तालियां और थालियां बजाकर तथा घरों में दीए-मोमबत्तियां जलकार उनका कहना तो माना, मगर अब सारा देश लॉकडाउन की स्थिति में है। घर से निकलने वालों को कहीं पुलिस पीट रही है तो कहीं वह लोगों को मास्क बांटती में नज़र आती है। दिल्ली-एनसीआर में सब्जियों की आमद कम हो गई है और मुनाफाखोर दुकानदार अपनी चांदी कूटने की जुगत में हैं।
कुछ समय पहले शुरू-शुरू में जब गुडगांव में पेटीएम का एक कर्मचारी इटली से लौटा तो पता चला वह कोरोना वायरस से संक्रमित है। ऐसे में तुरंत उस कंपनी ने अपना कार्यालय बंद कर दिया था और बाकी सभी कर्मचारियों से कहा कि वे अपने घर से ऑनलाइन काम करें। वैसे वर्क फ्राम होम की अवधारणा कोई नई बात नहीं है लेकिन रोजगार और फैक्ट्रीयां बंद होने से जहां बेरोजगारी बढ़ने के संभावना बहुत ज्यादा है, वहीं हमारी अर्थव्यवस्था भी संक्रमित हालत में दिखलाई पड़ रही है। आज के हालात की तुलना दूसरे विश्व युद्ध से की जा रही है लेकिन कोरोना रोकने में ज़रा सी भी चूक सबके लिए एक बड़ी त्रासदी साबित हो सकती है।
इस अघोषित कर्ण्य और लॉकडाउन का कहर छोटे मोटे व्यापारियों पर ज्यादा पड़ रहा है। वे भी कहते हैं कि हमारे देश की 16 प्रतिशत जनता को दो वक्त की रोटी नहीं मिलती। ये लोग यदि घर से नहीं निकले तो इन्हें कोरोना मार देगा या भूख मार देगी। पिछले दिनों पूरे देश ने अपने टीवी चैनलों पर शहरों से पलायन कर अपने गांव को जाते मज़दूरों की तस्वीरें सबने देखीं, लेकिन उनके लिए सरकार प्रबंधन में कमज़ोर दिखीं। इसका कोई सही प्रमाण सामने नहीं आया।
इस समय बाज़ार की हालत गिरी हुई है। लोग सोचते हैं कि अपना पैसा बैंकों में रखें या क्या करें? इस मामले में कई विशेषज्ञों का कहना है कि आपातकाल में पैसा ही किंग कहलाता है। अतः अपने नकद पैसे को अपने पास रखें और सोच समझकर खर्च करें। बुरे वक्त में पैसा ही काम आता है। यह ठीक है कि लम्बे समय तक लोग घरों में कैद नहीं रह सकते और उनकी मजबूरियां या बेचैनियां उनमें अवसाद भी पैदा करती हैं। इसलिए हर किसी को चाहिए कि वह बेचैन पलों में सहजता की तलाश करें अपने घर निराशा और उदासी को हावी न होने दें।
कोरोना का लॉकडाउन हमेशा रहने वाला नही है अतः घर में रहकर कुछ नया व रचनात्मक करें, जिससे आपका समय भी कट जाए और आपको बोरियत भी महसूस न हो।समय, संकल्प औरसावधानी के शस्त्र लेकर आप कोई भी जंग जीत सकते हैं।