कन्नौज के ‘कालेश्वर नाथ' की ऐतिहासिकता


 राजीव अवस्थी


उत्तर प्रदेश का 'कन्नौज वह ऐतिहासिक नगरी है, जिसका नाम याद आते ही पृथ्वीराज चौहान आल्हाउदल और सम्राट हर्ष के साथ कनौजिया विप्रों के केन्द्रबिन्दु रूपी इस स्थली का प्राचीन ही नहीं अर्वाचीन इतिहास मुखारित हो उठता हैइत्र और इतिहास की नगरी कन्नौज अपने आगोस में ऐसे अनेक ऐतिहासिक तत्व संजोए बैठी है उसकी परतें उकेरने पर नए-नए तथ्यों की जानकारी भावी पीढी को होती है।


गंगा के तट पर इस ओर किनारे-किनारे बहुतायत में शिवालय स्थित है इसमें छठी शताब्दी का बाबा गौरीशकंर मंदिर सातवीं शताब्दी का बाबा कालेश्वर नाथ मंदिर व बाबा विश्वनाथ मंदिर प्रमुख है। आज प्राचीन सिद्ध शिवमंदिरों में से बाबा कालेश्वर नाथ मंदिर की अपनी विशेषता है।


सम्राट हर्ष के बाद सन 725 के आसपास यशोवर्मन कन्नौज का सम्राट हुआ जो स्वयं संस्कृत का विद्धान कवि नाटककार था। संस्कृत विद्वान हरटेल ने अपने ग्रन्थ एशिया मेजर के प्रथम खण्ड पृष्ठ 12,13 पर लिखा है कि भवभूति के मालती माधव उत्तर रामचरित्र तथा महावीर चरित नाटकों की रचना कन्नौज के कालप्रियनाथ मंदिर में धार्मिक यत्रियों के लिए अभियाध की गयी थी। आज जिसे हम कालेश्वर नाथ मंदिर के नाम से जानते है उस समय कालप्रिय नाथ के नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध था। हरटेल महोदय यह भी लिखते हैं कि कालप्रियनाथ सम्राट यशोवर्मन परविार के इस्टदेव थे। कुछ विद्वान कालेश्वरनाथ महादेव की स्थापना यशोवर्मन के द्वारा ही मानते हैं।


तत्कालीन डा. आर.सी शर्मा निदेशक भारतकला भवन बी.एच.यू वाराणसी ने मंदिर का निरीक्षण कर राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्पदा संरक्षण अनुशंधानशाला लखनऊ को पत्र लिखकर मध्यकालीन विष्णु प्रतिमा है। जिसका क्षरण हो रहा है उस प्रतिमा के ट्रीमेंट की आवश्यकता पर जोर दिया था, जो आज तक नहीं हुआ। पुरातत्वविद रामप्रकाश फर्रुखाबाद ने लिखा है कि कालेश्वर नाथ मंदिर का महत्व गौरीशकर मंदिर से कदापि न्यून नहीं हैवर्तमान मंदिर गौरव की परम्परा को यत्किंचित जीवित रखने का प्रयास है। पांचाल शोध संस्थान के पुरातत्वविद डा. करुणा शंकर शुक्ल ने लिखा है कि मंदिर की प्रस्तरीय द्वार शाखाओं बाजुओं के निचले भाग में शिव पार्वती एंव शिव सेवकों को देखा जा सकता हैं उसके ऊपर का भाग आलंकरण विहीन है।


लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के प्रोफेसर डा. अमर सिंह ने चीनी यात्री हवेनसांग का हवाला देते हुये लिखा है कि कन्नौज मंदिर मकरन्दनगर के समीप स्थित है। शिव मंदिर में अलंकृत मूर्तियां भी थीं। दोनों मंदिर नीले पत्थरे से निर्मित थे। डा. शुक्ल ने कहा कि मुझे लगाता है कि इन दोनों में मंदिरों की प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां काले नीलम पत्थर की थी, क्यों कि गंगाधारी में उस काल में प्रसतर निर्मित मंदिरों की संभावना क्षीण ही थी। इस मंदिर का शिव लिंग काले नीलम पत्थर का है और ऊपर गोलाकार न होकर सपाट है


यह आध्यात्मिक सुख शान्ति देने वाला शिवालय अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा देता रहा हैइतिहासविद् डा. मदन तिवारी ने अपने आलेख में लिखा है कि देश को आजाद कराने हेतु इस मंदिर में आजादी के दीवानों की गोपनीय बैठकें हुआ करती थींअंग्रेजों के विरुद्ध रणनीति तैयार करना तथा व्यावहारिक रूप में परिणित करना, यही नहीं दीवानों ने इसे अपनी शरण स्थली बनाकर आजादी की लड़ाई के दौरान लोगों में आजादी के प्रति जज्बा व जोश पैदा करने के लिए इस मंदिर से निकलने वाले दधिकांधा को आज लोग राष्ट्रीय दधिकांधे के नाम से जानते हैं।


__ मंदिर परिषद में भगवान नरसिंह परशुराम भगवान आदि के विग्रह के साथ-साथ सिद्ध सन्त नागा बाबा की समाधि भी स्थित है। तमाम ऐतिहासिक साक्ष्यों का साक्षी यह शिवालय वर्तमान में लोगों की उपेक्षा का शिकार बना हुआ है। जीर्णोद्धार की बाट जोहता यह मंदिर भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा पद बना रहे इसके लिए इस स्थान का नयनाभिराम होना आवश्यक हैजिसमें लोगों को आगे आकर अपना सहयोग प्रदान करना चाहिएं मंदिर के सर्वराकार मनोज कुमार शुक्ले द्वारा कुछ न कुछ इस ऐतिहासिक शिवालय में आध्यात्मिक सांस्कृति सामाजिक समारोह हुआ ही करते रहते हैं फिर भी पुरातत्व विभाग द्वारा यदि गौर किया जाय तो इसकी ऐतिहासिकता और धार्मिकता का संरक्षण किया जा सकता है।