अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले - नरेश मंडल


आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे शख़्स की जिसका जन्म बिहार की धरती पर हुआ मगर बचपन से ही उसके सपने आसमान छू रहे थें। बिहार के एक छोटे से गाँव में जन्मे इस शख़्स ने महज़ 34 साल में अपनी प्रतिभा और कौशल से न केवल अपने गाँव-जिला का नाम रौशन किया है बल्कि पूरे बिहार के नामचीन फिल्मी हस्तियों और संस्कृतिकर्मियों के बीच अपनी पहचान बनाई है। हम बात कर रहे हैं एक युवा फिल्म निर्माता-निर्देशक एवं समाजसेवी एन मंडल (नरेश मंडल) की। जिसका जन्म 13 अप्रैल 1986 को बिहार राज्य अंतर्गत समस्तीपुर जिला के बन्दा दसौत गाँव मे हुआ। बिहार की मिट्टी में जन्में इस शख़्स ने अपनी प्रतिभा का लोहा बचपन में ही मनवा लिया। एन. मंडल ( नरेश मंडल ) इंटरमीडिएट की पढ़ाई के बाद गाँव छोड़कर सीधा मुंबई चले आये।  फिल्मों के प्रति इनका लगाव इतना ज्यादा था कि छोटे बड़े पदों पर फ़िल्म इंडस्ट्रीज़ में काम करते हुए अपनी एक अलग पहचान बनाई। एन. मंडल आज एक सफल फ़िल्म निर्माता- निर्देशक, एडिटर और समाजसेवी हैं। इनको सोशल वर्क में भी रुचि है और यही वजह है कि ये सोशल एक्टिविटी करते रहते हैं। एन. मंडल अभिनेता / निर्देशक के रूप में क्षेत्रीय मैथिली फीचर फिल्म 'राखी के लाज' में योगदान दिया है। उन्होंने कई टीवी शो में भी पोस्ट प्रोडक्शन किया जैसे  कि तीन बहुरानिया, जीवन साथी, लागी तुझसे लगन, आदि…  एन. मंडल  बिहार और दक्षिण भारत में संस्कृति लाने के लिए अपने कौशल का योगदान दिया। उन्होंने छट पूजा और केरल अनुष्ठानों के आधार पर कई लघु फिल्में और वृत्तचित्र बनाए हैं। इन सभी रचनाओं ने एन मंडल को सुर्खियों में ले आया है और उन्हें एक सक्रिय सामाजिक योगदानकर्ता के रूप में जाना जाता है। एन. मंडल कई लघु फ़िल्म और डॉक्युमेंट्रीज़ का भी निर्माण कर चुके हैं जिनमें मुक्ति अभिशाप से, लोकआस्था का महापर्व छठ, नसा द एरर आदि प्रमुख हैं । मुक्ति अभिशाप से एक सामाजिक कुरीति पर आधारित बेहतरीन फ़िल्म है और एन. मंडल अभी कई सारे प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं जो निकट भविष्य में आपके बीच होगी।


बंद कमरों में गूँजूँ मैं वो आवाज़ नहीं...मैं खुलेआम हूँ कोई राज नहीं...-नरेश मंडल