सर्दियों में बच्चों को कैसे स्वस्थ रखें?
गिरते तापमान के साथ सर्दियों का आगमन हो चुका है। इस बदलते मौसम का प्रभाव बड़ों पर तो होता ही है, बच्चे भी इससे अछूते नहीं रह पाते। वे इस मौसम की चपेट में जल्दी आ जाते हैं। कॉमन फ्लू के अलावा बच्चों में जुकाम, ब्रोकाइटिस और सिड्स (सड़न इफेंट डैथ सिंड्रोम) की समस्या ज्यादा देखने को मिलती है। अगर आप बच्चे को स्वस्थ देखना चाहती हैं, तो मौसमी बीमारियों से बचाएं। फ्लू इफ्लूएजा वायरस जनित रोग है, जो तेजी से फैलता हैफ्लू से होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का सबसे ज्यादा जोखिम बच्चों को ही रहता है। यदि आपके बच्चों को तेज बुखार है, ठंड लग रही है, खांसी है, गला खराब है, नाक बह रही है या बंद है, मांसपेशियों या शरीर में दर्द है, सिरदर्द है, तो उसे डॉक्टर से शीघ्र दिखाएं। बच्चे को फ्लू हो, तो थोड़ी थोड़ी देर में उसे सूप और थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाना देती रहेंयदि आपका बच्चा छह महीने या ज्यादा का है, तो उसे हर वर्ष सीजनल फ्लू की वैक्सीन दिलवाएं। बच्चों को विशेष रूप से सर्दियों में सामान्यतः 6 से10 बार जुकाम हो ही जाता है। जुकाम से राहत के लिए द्रव व आराम जरूरी है। खांसी के सिरप व एंटी हिसटेमाइंस दवाइयों से लक्षणों में आराम मिल सकता है। यदि आपके बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो रही है या तेज बुखार, सिरदर्द, छाती में दर्द है, तो डॉक्टर से संपर्क करें। पांच वर्ष से कम के बच्चों में पाई जाने वाली यह आम समस्या है। इस रोग सांस की नलियों में सूजन आ जाती है, जो बैक्टीरिया या एलर्जी के कार ग होती है। इसके लक्षणों में सांस लेने में परेशानी व तेज खांसी हो सकती है। सिड्स छह महीने से कम उम्र के बच्चों में होता है। सर्दियों में शिशु को ठंड से बचाने के लिए अतिरिक्त कंबलों से ढंकने से यह समस्या हो सकती है और बच्चे का दम घुट सकता है। पूरी तरह बंद कमरे में ब्लोअर आदि भी न चलाएं। छह महीने की उम्र के बच्चों को छूने से पहले अपने हाथ साबुन से जरूर धोएं, विशेषकर तब जब आप शॉपिंग आदि करके आई हों या उसकी नैपी बदल रही हों। साफ-सफाई का ख्याल रख बच्चे को रोगाणु मुक्त माहौल दे सकती हैं। ऐसी दवाइयां कदापि न दें, जो डॉक्टर द्वारा न लिखी गई हो। पहले साल में शिशु का विकास व वृद्धि दर किसी भी अन्य समय की अपेक्षा अधिक होती है। यह वह समय होता है, जब उसका वजन तीन गुना और लंबाई डेढ़ गुना बढ़ती है। साथ ही इसी दौरान बच्चे का महत्वपूर्ण शारीरिक विकास जैसे बैठना, चलना आदि भी होता है। ऐसे में बच्चे को सबसे ज्यादा जिस पोषक तत्व की जरूरत होती है, वो है आयरन । आयरन बच्चे के शरीरिक और मानसिक विकास के अलावा हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए भी जरूरत होता है। हीमोग्लोबीन कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाने व रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है। आयरन की जरूरत 6 माह से सात साल के बच्चों एवं किशोरावस्था के दौरान लड़कियों में सर्वाधिक बढ़ जाती है। एक से तीन साल के बच्चे के लिए प्रतिदिन 12 मिलीग्राम और 4 से 6 साल के बच्चों के लिए 18 मिलीग्राम आयरन प्रतिदिन जरूरी होता है। एक स्वस्थ मां के दूध की आयरन की जरूरत पूरी कर देता है। साथ ही मां के दूध में उपलब्ध आयरन को शिशु का शरीर आसानी से पचा भी लेता है। शुरू के 6 महीनों में बच्चे की सभी जरूरतों की पूर्ति मां का दूध कर देता है, लेकिन आजकल महिलाएं कामकाजी हैं। ऐसे में कामकाजी मां का दूध शिशु को 6 महीने तक नहीं मिल पाता और बच्चे को बोतल का दूध पीना ही पड़ता है। ऐसे में शिशु में खून की कमी की समस्या होना आम बात है। 6 माह तक तो बच्चे को ठोस आहार नहीं दिया जाता, लेकिन 6 माह के होने के बाद भी बच्चे को यदि जरूरी आयरन, मिनरल और विटामिन न मिलें तो बच्चा एनीमिक हो जाता है।
खून की कमी के लक्षण
•बच्चा पीला दिखाई देने लगता है। बच्चे के चेहरे की लालिमा गायब हो जाती है।
•बच्चा जल्दी थक जाता है। कमजोरी व आलस का अनुभव करता है।
•भागने पर या खेलने के दौरान हांफने लगता है और सांस लेने में कठिनाई होती है।
•एनीमियाग्रस्त बच्चों को इंफेक्शन भी आसानी से लग जाता है। एनीमिया की समस्या बहुत जल्दी शुरू होकर काफी लंबे समय तक बनी रहती है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि 6 माह का होने के बाद खुराक के जरिये बच्चे की आयरन की जरूरतें पूरी की जाएं। 6 माह के शिशु को पर्याप्त मात्रा में आयरन देने के लिए उबली और मैश्ड की हुई सब्जियों से शुरुआत करें। ऐसे करे आयरन की कमी को दूर
• सभी हरी पत्तेदार सब्जियों, काबली चना, मसूर की दाल, अनार, चुकंदर, अनन्नास आदि में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
• एक साल के बाद बच्चे के दूध की मात्रा आधा लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। •खाना खाने के समय बच्चों को चाय या कॉफी न दें। इससे मौजूद टेनिन आयरन के पाचन को कम कर देता है।