साईं बाबा की अयोध्या यात्रा
अपने पिता गंगाभाऊ की मृत्यु के बाद साईं बाबा को वली फकीर अपने साथ 8 वर्ष की उम्र में इस्लामाबाद ले गए थे। वहां उनकी मुलाकात रोशनशाह बाबा से हई इस्लामाबाद ले गए थे। वहां उनकी जो उनको अजमेर में ले आए। रोशनशाह बाबा कहां के थे यह नहीं मालूम। रोशनशाह बाबा की मृत्यु के समय हरिबाबू ऊर्फ साई बाबा इलाहाबाद में थे। रोशनशाह बाबा के इंतकाल के बाद बाबा एक बार फिर से अकेले हो गए थे। बाबा की उम्र छोटी थी तब एक समय की बात है। सांई बाबा रोशनशाह बाबा के साथ इलाहाबाद में रहते थे। उनके इंतकाल के बाद बाबा वहीं रुके रहे क्योंकि उस वक्त वहां कुंभ पर्व चल रहा था। कोने-कोने से देश के संत आए हुए थे जिसमें 'नाथ संप्रदाय' के संत भी थे। वे नाथ संप्रदाय के प्रमुख से मिले और उनके साथ ही संत समागम और सत्संग किया। बाद में वे उनके साथ अयोध्या गए और उन्होंने राम जन्मभूमि के दर्शन किए, जहां उस वक्त मंदिर को तोड़कर बाबर द्वारा बनाया गया बाबरी ढांचा खड़ा था। अयोध्या पहुंचने पर नाथपंथ के संत ने उन्हें सरयू में स्नान कराया और उनको नाथपंथ में दीक्षा देकर उनको एक चिमटा (सटाका) भेंट किया। यह नाथ संप्रदाय का हर योगी अपने पास रखता है। फिर नाथ संत प्रमुख ने उनके कपाल पर चंदन का तिलक लागाकर कहा कि वे हर समय इसका धारण करके रखें। उल्लेखनीय है कि जीवनपर्यंत बाबा ने तिलक धारण करके रखा, लेकिन सटाका उन्होंने हाजी बाबा को भेंट कर दिया था। अयोध्या यात्रा के बाद नाथपंथी तो अपने डेरे चले गए, लेकिन हरिबाबू फिर से अकेले रह गए। बाबा घूमतेफिरते राजपुर पहंचे, वहां से चित्रकूट और फिर बीड़। बीड़ से वे फिर से अपने जन्म स्थन पाथरी पहुंच गए। वहां से वे घुमते फिरते शिरडी जा पहुंचे।
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