केदारनाथ महिमा (कविता)
यह अलौकिक स्वर्ग है
या
धरती में रचित शिवरूपी स्पर्श।
भक्ति का रूप सजा
हिमगिरि में और
मानव ने तीर्थ रूप दिया
पर्वत शिखर को।
सात्विक आनंद में
विचरते भक्त जन कह रहे
मानव तू बन ---
धैर्य, शक्ति व् शीतलता
का सुमन- नहा पाए हम
वहां सबके मन में ऐसी
झंकार
जो गूंजे प्रकृति के सौंदर्य में
बन अदभुत काया।