माँ (कविता)
माँ के मरने के बाद अपनी आत्मीयता को लेखक ने खूबसूरत शब्दों में पिरोया है
- तूझे सांस न आए पूरे
- स्वप्न हमारे रहे अधूरे
- आधी रात का घुप अंधेरा
- मेघों ने अम्बर था घेरा
- ऐसे में कुछ गुपचुप चंदा
- छिपकर तेरे प्राण बिन गया
- अपने सभी सितारों के संग
- तेरे पावन प्राण गिन गया
- फिर प्रभात को प्यारी मां
- तू सदा-सदा को मौन हो गयी
- मेरी आंखों को पथराकर
- तू गहरी नींद सो गई
- सावन का वो महाकमीना
- मेरी आंखों से बरसा फिर
- रह-रह रूक-रूक टपके आंसू
- तुझे देखने को तरसा दिल
- पर तेरी तस्वीर के सिवा
- मुझको कुछ भी मिल न पाया
- तेरे संग बितायी सदियों ने
- तुझसे मुझे मिलाया
- मेरे बालों को संवारती
- गलियों में मुझको पुकारती
- स्नेह भरी आंखों से
- हरपल मुझको निहारती
- शीतल छांव तेरे आंचल की,
- मेरे ऊपर सदा रही मां,
- मुझे सदा ठंडक पहुंचाती
- स्वयं धूप में खड़ी रही मां
- पर तेरे दर्दो को हाय
- कोई भी तो बांट न पाया
- साँसों से धोखा कर
- निष्प्राण हो गयी तेरी काया
- अब मेरे उजड़े बालों को
- कोई नहीं संवारेगा मां
- अब गलियों में जाकर मुझको
- कोई नहीं पुकारेगा मां
- कौन दर्द समझेगा मेरा
- कौन कहेगा क्यूं रोता है,
- कौन कहेगा दिन चढ़ आया,
- पर तू अब तक क्यूं सोता है
- कौन शरद की आधी रातों में
- मुझ पर कम्बल ओढ़ेगा
- कौन मुझे भरपेट खिलाये बिना
- कभी भी न छोड़ेगा।
- हाय वो अनमोल प्यार क्यूं
- शिव ने मुझसे छीन लिया है
- वात्सल्य का निर्भल पौधा
- क्यूं, आँगन से बीन लिया है।
- क्यूं तेरी मीठी लोरी के शब्द
- क्षुब्ध हो बिखर गये मां
- क्यूं विषाद के पौधे
- आँगन में, बिन बोये
- निखर गये मां,
- क्यूं घर की चौखट सूनी सी
- क्यूं घर के कमरे खाली से
- क्यूं तुलसी मुरझाई सी है
- और सभी टूटी डाली से
- मैं इक पतझड़ के पत्ते सा
- तेरे इस गम के झौंके से
- कहां से उड़ा, कहां जा गिरा
- कभी आसमां में दबा सा,
- कभी दिलासाओं में जा घिरा
- मगर मुझे मालूम है मां,
- अब नहीं कभी भी
- आयेगी तू।
- गीत प्यार के गाये थे
- पर नहीं कभी अब गायेगी तू
- फिर भी बस इक किरण आस की
- मुझे आज भी नज़र आ रही
- ममतामय वो गीत पुराने
- खड़ी शून्य में कहीं गा रही
- मां तुझ से अनुरोध है मेरा
- गीत प्यार के गाती रहना
- घाव हो गये मेरे दिल पर
- कम से कम सहलाती रहना।
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