एक तोला प्याज का सवाल है बाबा...(व्यंग्य)


जब से प्याज के भाव आसमान छू रहे हैं। भाई , मेरे सपने में प्याज ही प्याज दिख रही है। वैसे मैं कच्चा प्याज खाने का शौकीन हूं। एक रात मैं सपने में प्याज लाना-प्याज लाना बड़बड़ा रहा था। पत्नी ने सुना। मुझे हिलाया। "क्या बात है नाक से खून निकल रहा था? या फिर शरद आगमन मौसम में 'लू'लग गयी थी? जो सपने में प्याज लाना बड़बड़ा रहे थे। घर में महीने भर से आई है जो प्याज लाकर देती?" आधी रात में ही पत्नी ने शब्दों के तीखे बाण से हम पर प्रहार किया। हम हड़बड़ाकर उठे। शरम से भीगे हम पत्नी से नजरें चुराने लगे। हमारी फिरती नजरों पर पत्नी ने गौर किया। बोली-"किसी और को रेस्टोरेंट में प्याज वाली रेसिपी खिलाकर खुश तो नहीं कर रहे हो इन दिनों?"


पत्नियों और पत्रकारों में एक समानता है। जैसे पत्रकार मूतने गए आदमी के पीछे लग जाते हैं। मसलन यदि कोई अचानक उठ कर मूतने गया तो क्यों गया। क्या आसपास वालों को बताकर गया ? यदि नहीं तो क्यों ? टायलेट में गया या खुले मैदान या फिर किसी मकान की आड़ में? पेशाब को कितनी देर से दबा कर रखा था? दबाकर रखने के पीछे कारण क्या था? कहीं उसे डायबिटीज या बहुमूत्र की बीमारी तो नहीं? या नशे की गोली तो नहीं खा रखी है? ऐसे कुछ प्रश्नों से मीडियावाले आम आदमी की फोटो खींचते रहते हैं। पत्नियों के समक्ष पति भी ऐसे ही दौर से गुजरते रहते हैं। उस रात मेरे साथ भी ऐसा दौर था सपने की तस्वीर को छाप तो नहीं सकता था। अतः उत्तर क्या देता। सो चुप रहा। मैंने पत्नी के ऐसे ही प्रश्नों के भय से टीवी देखना बंद कर दिया है। ताकि प्याज जैसे मसलों के समाचार मेरी उपस्थिति में पत्नी न सुन सके।


मैंने इंटरनेट पर एक ब्लॉग "प्याज पर विचार मंच" बना रखा है। जिसके अंतर्गत मैं आम पाठकों, लेखकों, सब्जी विक्रेताओं और प्याज के जमाखोरों से विचार आमंत्रित करता हूं। मसलन सस्ती प्याज कैसे खरीदें ? कहां से खरीदें ? प्याज न खरीद सकने के कारण पत्नी के सवालों से कैसे बचें ? प्याज के स्वाद का विकल्प सुझाएं।"


एक सुखद घटना यह है कि विचार आना शुरू हो गए हैं। एक सार्थक विचार यह आया की सड़ी प्याज बाजार में फ्री में मिल जाएगी, कृपया बीन -छांटकर ले आयें।


"साब, प्याज का घर में आना ही सुखद घटना है इन दिनों। प्याज की खुशबू या बदबू पड़ोसी की नाक तक जरूर पहुँचनी चाहिए। ताकि पड़ोसी को पता चले कि फलां जी के घर इतनी मंहगी प्याज बाकायदा आ रही है। स्टेटस के जमाने में दिखावा तो जरूरी है, साब।"


भई, उस दिन सब्जी बाजार में खड़ा था। सब्जियों के भाव पता कर रहा था। इसी बीच मुझे ध्यान आया। पत्नी ने दफ्तर से लौटते वक्त प्याज लाने को कहा था। यूँ तो मै प्याज के आसमान छूते भाव से अनभिज्ञ नहीं था। फिर भी मैंने एक सब्जी विक्रेता से प्याज का भाव पूछा। वह बोला -"अस्सी रूपये किलो साब। कितना तौल दूं? एक छटांक या एक पाव?"


शायद वह मेरी शक्ल पर उभरी औकात को पहचान चुका था। "रहने दो।" मैंने कहा।


वह तुरंत बोला-"लहसुन रख लीजिये चालीस रुपये किलो है। दस में पाव भर मिल जाएगी।" मैंने न कहा तो वह मुंह बिचकाया और कुछ बुदबुदाया सा। मानो मैंने औकात न होते हुए भी उसका वक्त बरबाद किया


अभी मै सब्जी खरीदने ही वाला था कि वर्मा जी मिल गए। चंद चर्चा के बाद बोले -"प्याज खरीदने आये हो।"


"अरे कहां यार। सब्जी ही ले जायेंगे।"


"प्याज भी तो सब्जी का अंग है। थैला अभी तक खाली है, मतलब प्याज खरीदने ही आये हो। खरीदो भैया, आप लोग ऊपरी कमाई वाले ठहरे।" इतना कह कर वे हंसते हुए आगे बढ़ लिए । इधर कलेजा आँख में पड़े प्याज के रस की तरह जल उठा। साला, सब्जी मार्केट में खड़ा होना ही गुनाह है। सब्जी विक्रेता ने छटांक भर प्याज में औकात नाप दिया, और इन भाई साब ने ऊपरी कमाई में।


मन शांत हुआ था कि श्याम जी मिल गए। थैले में झांककर देखा। "क्या बात है ,थैला खाली रखा है। हम समझ गए आज मुर्गे खाने का मन होगा इसलिए प्याज लेने आये हो। कहो तो आज रात का भोजन आपके यहाँ हम भी....।"


"यार आपने मुझे कभी मुर्गा खाते देखा है।"


"भैया जब से महंगाई बढ़ी है लोग कथरी ओढ़कर घी खाने लगे हैं। ताकि पड़ोसी माँगने न लगे।" एक करारा-सा व्यंग ये भी जड़ कर आगे बढ़ लिए।


आज प्याज की औकात इतनी बढ़ गयी कि उसके सामने इंसान की औकात शेयर मार्किट की तरह बदतर होकर रह गयी है। अब किसे दोष दें। एक प्याज के लिए इतने कठोर व्यंग सुनने पड़ रहे हैं। जो पहले माटी के मोल बिकती हुई गोदामों में सड़ती-गलती रहती थी।


घर पहुंचे तो पत्नी ने थैला देखा। "यह क्या पावभर प्याज?"


"तुम्हे मालूम नहीं प्याज क्या भाव बिक रही है ?आसमान छू रहे हैं।"


"छूने दो पर तुम्हे तो जमीन पर खड़े होकर खरीदना है।"


"देखो यार एक अदना-सी प्याज के लिए हम पर यूं ताने न मारो। अभी बाजार में दो लोग मारकर गए हैं।"


"क्यों न मारें? मुहल्ले में हमारी भी कोई इज्जत है कि नाही....। अब घर के बाहर क्या प्याज के दो छिलके भी न डालें कि पड़ौयिों में तनिक इज्जत बची रहे..।"


"अब बकवास बंद करो।"


"क्यों करूँ? आपको मालूम है कि मैं ऐसे परिवार से रही हूँ जहां प्याज को देखना तो क्या सूंघना तक पसंद नहीं करते। तुम्हारी प्याज खाने की आदत ने हमें भी प्याज का आदी बना दिया।"


प्याज को लेकर पत्नी के ताने से हम ऊब चुके थे। अत: हमने एक रास्ता सुझाया


"देखो रानी ,एक नेक काम में तुम मेरा सहयोग दो।"


"कहिए।"


"अपन उस बाबा के पास चलकर गुरु दक्षिणा लेते हैं जो प्याज-लहसुन को तामसी भोजन का द्योतक बताते हैं।"


"इससे क्या होगा।"


"गुरु दक्षिणा लेने के बाद अपन लोग प्याज खाना बंद कर देंगे। फिर वह मंहगी रहे या सस्ती। अपने को क्या लेना-देना।"


"पहले क्यों नहीं आजमाया यह सब।"


"पहले प्याज इतनी कीमती वस्तु नहीं थी।"


"देखो जी, तुम्हारे ये नखरे उस नकली मेकअप के सामान हैं, जो पहली पसीने की धार बन कर बह जाते हैं। प्याज जिस भाव भी मिले आपको लाना होगा।" मैं चुप रहा। आखिर कहता भी क्या..? 


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