भावनाएं छिपाना महिलाओं के लिए नुकसानदेह


(काजल पत्रिका) कुछ नए शोधों से पता चला है कि जो महिलाएं अपनी भावनाओं पर काबू रखती हैं, वे अंदर ही अंदर गुस्से से उबलती रहती हैं। ब्रिटेन के ऐबर्डीन विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक शोध में इस बात का अध्ययन किया गया कि जब महिलाएं जानबूझ कर अपनी भावनाओं को दबाती हैं तो क्या होता है? इस अध्ययन में महिलाओं और पुरूषों के तीन अलग-अलग शोध हुए। रिपोर्ट की सह लेखिका डाक्टर जूडिथ होजी का कहना है कि परीक्षणों से ये निष्कर्ष निकले कि जो महिलाएं अपना गुस्सा जाहिर नहीं होने देतीं, वह सामान्य पुरूषों के मुकाबले कहीं अधिक खीझी, झल्लाई और विशुब्ध रहती हैं।


शोध के दौरान महिलाओं और पुरूषों को फिल्मों की दो भावुकतापूर्ण झांकियां दिखाई गई। एक गुट से कहा गया कि वे खुलकर अपना क्रोध प्रकट करें और दूसरे से कहा गया कि वो अपनी भावनाओं को दबाएं। एक अन्य गुट से कहा गया कि वे अपने गुस्से को पीकर किसी सुखद याद में खो जाएं। फिर उन्हें एक अन्य भावुकतापूर्ण फिल्म दिखाई गई और उनसे कहा गया कि वे स्वाभाविक रूप से प्रतिक्रिया व्यक्त करें।


ऐसा होने पर महिलाएं कहीं ज्यादा मुखर थीं और पुरूषों की तुलना में अपनी दबी हुई भावनाएं कहीं ज्यादा खुलकर प्रकट कर रही थीं। कुछ महिलाओं ने यह भी कहा कि उनका गालियां देने का मन हो रहा था। सेंट्रल लंकाशायर विवि.. के मनोविश्लेषक सैंडी मान का कहना है कि वो चाहे पुरूष हों या महिलाएं, गुस्से को पीना उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इससे उनमें उच्च रक्तचात संबंधित बीमारियों का जन्म बहुत हद तक संभव हो जाता है।


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