निराश रोगियों को भी ठीक किया एक्यूपंक्चर ने


चालीस वर्षीया अनिता माइग्रेन से पीड़ित थीं, उन्होंने काफी इलाज करवाया परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। हालत यहां तक पहुंच गई कि इससे उनका रोजमर्रा का जीवन भी प्रभावित होने लगा। ऐसे में उन्होंने एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति का सहारा लेने का निर्णय लिया। इलाज के लिए डॉक्टरों ने शरीर के विभिन्न हिस्सों में सुइयां चुभोईं। इस पद्धति से इलाज के पहले दिन ही उन्हें बेहतर महसूस हुआ। बाद में इसके आश्चर्यजनक परिणाम सामने आए और अब वह बिल्कुल ठीक हैं। एक्यूपंक्चर की इन सुइयों की चुभन हमें अनेक बीमारियों से निजात दिला सकती है। ऐसे में इनकी उपयोगिता पर शक यकीनन कोई भी नहीं करेगा।


ऐलोपैथिक चिकित्सा के इस युग में एक्यूपंक्चर सबकी जिज्ञासा का विषय है। इस चिकित्सा पद्धति में शरीर के कुछ निश्चित बिन्दुओं पर सुइयां चुभोकर विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है। यह पद्धति एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति से कुछ हद तक अलग है परंतु दोनों चिकित्सा पद्धतियों के मूल सिद्धान्त लगभग समान ही हैं


प्राचीन एक्यूपक्चर का प्रारंभ चीन में हुआ। चीनी टेओइस्ट धर्म के अनुसार येंग व यिग नामक दो विपरीत अवस्थाओं पर शरीर की सामान्य व्यवस्था निर्भर करती है। येंग अवस्था उजाले, सूर्य दक्षिण, पुरुषत्व और सूखेपन से संबंधित है जबकि यिग अवस्था अंधेरे, चन्द्रमा, उत्तर स्त्रीत्व और गीलेपन से संबंधित है। इस मान्यता के अनुसार येग और यिग अवस्थाओं में असंतुलन होने पर ही कोई रोग उत्पन्न होता है। एक्यूपंक्चर चिकित्सा प्रणाली इन्हीं दो अवस्थाओं में संतुलन बनाने में सहायक होती है।


भारत, मंगोलिया और चीन जैसे देशों के प्राचीन चिकित्सकीय ग्रंथों में एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धति में मानव शरीर के कुछ दबाव पर चिकित्सा पद्धति टिकी है। इस पद्धति में शरीर में स्थित दबाव केन्द्रों और नसों में एक विशेष प्रकार की सुई चुभाकर रोग का उपचार किया जाता है। ये सुइयां पीतल या अन्य धातु की बनी होती है, जिनकी लंबाई 2 से 2.5 सेटी मीटर हो सकती है। मानव शरीर पर एक से आठ सौ बिन्दुओं तक इन्हें चुभाया जा सकता हैं। विभिन्न दबाव बिन्दुओं पर न तो इन्हें अधिक गहरा चुभाया जाता है और न ही इन्हें चुभाने में कोई खास दर्द महसूस देता है। इन सुइयों को चुभाने से मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी में एक विद्युतीय धारा उत्पन्न होती है जिससे सम्पूर्ण शरीर प्रभावित होता है।


एक्यूपंक्चर ट्रीटमेंट दिए जाने की अवधि क्या हो? इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं है। विभिन्न रोगों के लिए यह अवधि अलग-अलग होती है। पुराने तथा असाध्य रोगों के इलाज के लिए प्रतिदिन कम से कम दो बार यह चिकित्सा दी जानी चाहिए। सुई चुभाकर रखने की अवधि कुछ मिनटों से लेकर घंटों की हो सकती है। जब चिकित्सक को यह विश्वास हो जाता है कि इस चिकित्सा से रोगी ठीक हो जाएगा तो चिकित्सा की अवधि को कम कर दिया जाता है और इलाज सप्ताह में केवल एक या दो दिन के लिए ही दिया जाता है। रोग के लक्षण समाप्त होने पर भी रोगी की यह चिकित्सा कुछ दिनों तक जारी रहनी चाहिए ताकि रोग को समूल नष्ट किया जा सके। एक्यूपंक्चर के विशेषज्ञों का मानना है कि रोगी के पूर्णयता स्वस्थ्य होने पर ही यह चिकित्सा बंद करनी चाहिए।


एक्यूपंक्चर चिकित्सा के द्वारा विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है। आंख संबंधी रोगों के उपचार के लए यह पद्धति विशेष रूप से लाभदायक है। हमारे शरीर में उपस्थित दबाव केन्द्र, जिसे चिकित्सकीय भाषा में यूपी-67 कहते हैं, सर्वाधिक प्रभावशाली होता है। आंखों के इलाज की चिकित्सा इसी एक्यूपांइट के जरिए दी जाती है। जोड़ो का दर्द, सिर दर्द या माइग्रेन, कमर दर्द, गठिया, तनाव, स्पान्डे लाइटिस साइटिका तथा अल्सर जैसे रोगों का इलाज भी इस चिकित्सा पद्धति के द्वारा संभव है। विभिन्न मानसिक रोगों के इलाज में भी यह चिकित्सा प्रभावशाली होती है। इस प्रणाली में रोगी को बेहोश कर जटिल शल्य क्रिया भी की जा सकती है। केवल मानव मात्र ही नहीं इस पद्धति से पशुओं का भी इलाज किया जा सकता है। इस चिकित्सा पद्धति द्वारा पशुओं के भी विभिन्न अंगों को सुन्न करके उन पर शल्य क्रिया की जा सकती है।


विभिन्न रोगों के सफल इलाज को देखते हए आज कल इस पद्धति का चलन बढ़ता जा रहा है। किसी भी रोग के लिए ट्रीटमेंट लेते समय यह सुनिश्चित कर लें कि जिस व्यक्ति से आप ट्रीटमेंट ले रहे हैं वह इस चिकित्सा पद्धति में पूर्णतया पारगंत हो अन्यथा आपको हानि उठानी पड़ सकती है। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक्यूपंक्चर का चलन अपेक्षाकृत नया तथा कम विस्तृत है अतः गलत हाथों में पड़ने से आपको नुकसान हो सकता है। सूई की हल्की सी चुभन से इलाज कराने से एक तो आप विभिन्न रोगों से पूर्णतया निजात पा सकते हैं वहीं दूसरी ओर दवाइयों के कड़वे स्वाद तथा उनके साइड इफैक्ट्स से भी आप बचे रह सकते हैं।