किशोर उम्र का प्यार
प्रेम कितना अच्छा शब्द है लेकिन उसका मर्म ठीक से न समझने वाले अक्सर धोखा खाते हैं, या फिर कछ लोग प्रेम का उपयोग अपनी ठगी या धंधे के लिए इस्तेमाल करते हैं। मतलब यह है कि प्रेम में प्रेम का उपयोग और दुरूपयोग दोनों खूब होता है।
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प्रेम एक ऐसा शब्द है जो हर जगह उपयोग हो सकता है। मां-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री से लेकर मित्रों और दोस्तों तक प्रेम का विस्तृत संसार फैला है और हर जगह प्रेम का एक अलग अर्थ है एक अलग मतलब है। प्रेम शब्द ही किसी गैर को अपना बना लेता है, और यही ऐसा शब्द है जो अगर किसी के पास न हो तो वह रूखा कहलाता है क्योंकि प्रेम की रसधारा जिसमें न बहे वो रूखा ही होगा।
आजकल जो सबसे ज्यादा प्रेम सुनने में आता है वो है किशोर उम्र प्रेम। बचपन से जवानी में कदम रखते ही आजकल जो प्यार हुलारे मारने लगता है वह है किशोर उम्र का प्यार। इस प्यार के चर्चों के बीच में किसी किशोर या किशोरी के घर से भागने की खबर भी उड़ती रहती है। प्रेम जितना अच्छा शब्द है लेकिन उसका मर्म ठीक से न समझने वाले अक्सर धोखा खाते हैं, या फिर कुछ लोग प्रेम का उपयोग अपनी ठगी या धंधे के लिए इस्तेमाल करते हैं। मतलब यह है कि प्रेम में प्रेम का उपयोग और दुरूपयोग दोनों खूब होता है।
बात किशोर उम्र की प्यार की हो रही है। किशोर उम्र ऐसी होती है जब किसी चीज को ठीक ढंग से समझा नहीं जा सकता है। इस उम्र में भवनाएं अधिक काम करती हैं, दिमाग उतना काम नहीं करता, इसलिए यही उम्र होती है जो जीवन की दिशा तय करती है।
उम्र के इस दौर में सिनेमा भी दिलो-दिमाग पर इस तरह हावी होता है कि सोचने समझने की जो रही सही समझ होती है वो भी खत्म हो जाती है और किशोर सिनेमा के हीरो-हीरोइनों की तरह व्यवहार करने लगते हैं। इसलिए तो कहा जाता है कि सिनेमाई प्रेम है। सिनेमाई प्रेम के बाद अब है इलैक्ट्रानिक मीडिया का युग। जहां दर्जनों कार्यक्रम चौबीसों घंटे चल रहे हैं, इंटरनेट भी आसानी से उपलब्ध है और इनमें से बहुत से कार्यक्रम ऐसे हैं जो किशोरों को भटकाव के रास्ते पर ले जा रहे हैं। किशोर बड़ी जल्दी भटक जाते हैं और ऐसे कार्यक्रम उन्हें वास्तविकता के बदले ऐसे कल्पना लोक में विचरने के लिए लालायित कर देते हैं, जिनका परिणाम सुखद नहीं होता।
किशोर उम्र का प्रेम शुद्ध नहीं होता है क्योंकि यह भावनाओं के ज्वार में डूबा हुआ होता है। वे भावनाओं के ज्वार में उतरते-डूबते चले जाते हैं और जब किनारे आते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। पार्को, रेस्तरां, क्लबों से लेकर बहुमंजिली इमारतों की सीढ़ियों के नीचे ऐसे किशार प्रेमी क्षणिक तृप्ति खोजते हुए दिख जाते हैं। जिन्हें प्यार का मतलब भी पता नहीं होता। सीढ़ी के नीचे 14-15 वर्ष के किशोर-किशोरी को परस्पर चुम्बन लेते यह पता नहीं कि वे क्या कर रहे हैं। घर से भागने की उनकी इच्छा के पीछे दिमाग नहीं होता है। उन घरों में भी इस तरह की छूट किशोरों को अधिक मिल जाती है जहां माता-पिता के सम्बन्ध बहुत खराब होते हैं। फिर जहां माता-पिता आधुनिकता के नाम पर अत्यधिक स्वच्छद होते हैं, जिन्हें अपने बच्चों को देखने का समय ही नहीं होता।
स्कूल के बच्चों की उम्र ही क्या होती है लेकिन आज स्कूली बच्चों में किशोर उम्र के प्रेम के मामले काफी प्रकाश में आ रहे हैं। पड़ोस के किसी युवक के जाल में फंसकर उसके साथ भागने की घटनाएं अक्सर अखबारों की सुर्खियों में होती हैं। यह वह उम्र होती है जब अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता और देह-संबंधों का परिणाम मालूम नहीं होता। पब्लिक स्कूलों में खुलापन अधिक होता है, यह खुलापन जहां संकीर्णता को मिटाता है वहीं कई बार इतना अधिक खुलापन ले आता है जिसका अंत किशोरों के विपरीत लिंगी हम उम्रों के बीच गलत संबंधों के साथ होता है। वास्तव में यह स्थिति चिंताजनक है। बहुधा ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षक भी अपने मोहजाल में ऐसी किशोरियों का फंसा लेते हैं जिन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता कि यह प्रेम नहीं बल्कि उन्हें विनाश के गर्त में ले जा रहा छिछला प्यार है, प्यार के नाम पर ठगी है। खेलने-खाने की उम्र हो उस उम्र में एड्स के चुगुल में फंसते किशोरों का भविष्य आखिर कैसा होगा?
अपने बच्चों को आया के भरोसे छोड़कर सुख के लिए क्लबों, रेस्तरां और किसी पार्टी में हर समय व्यस्त रहने वाली महिलाओं के बच्चों का भविष्य आखिर क्या होगा? घरेलू नौकरों के साथ किशोर होते बच्चों के भविष्य की चिंता उन्हें कभी नहीं सताती और वे बच्चे असमय में ही गलत संगत में फंस जाते हैं। यह प्यार ड्रग्स से लेकर अवैध शारीरिक संबंधों तक में उन्हें ऐसा फंसा लेता है जहां से बहार निकलना उनके लिए आसान नहीं होता।
किशोर प्रेम में सबसे अधिक सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि यह ऐसी उम्र होती है जब समझ नहीं होती। यह माता-पिता का कर्त्तव्य है कि वे किशोर होते जा रहे अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करें, उन्हें सही दिशा दें। इस उम्र में किशोरों को अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता इसलिए बहकने में देर नहीं लगती। यही ऐसी उम्र है जब सतर्क रहने की ज्यादा जरूरत है क्योंकि इसमें बहुत बार ऐसे लोग अधिक बहका देते हैं जो बहुत निकट के होते हैं, जिनके बारे में कभी बुरा होने की आशंका भी नहीं होती। तभी तो आजकल चचेरे भाई-बहन के आपस में संबंध बन जाते हैं। उत्तर भारत में हिंदू धर्म में रक्त संबंधों के बीच वैवाहिक संबंध सामाजिक कानूनी एवं धार्मिक दृष्टि से अच्छे नहीं माने जाते। लेकिन किशोर उम्र में ऐसे संबंधों के बनने की आशंका सबसे अधिक होती है।
किशोर उम्र का प्यार न तो शाश्वत होता है और न उदात्त एवं पवित्र, बल्कि इस उम्र का प्रेम छिछला अधिक होता है जिसका अंत कभी सुखद नहीं होता, और वह स्वयं किशोर प्रेमियों से लेकर माता-पिता के लिए दुःस्वप्न बन कर रह जाता है। इसमें न तो खुदा मिलता है न विसाले सनम।