फलों का राजा 'आम'
एक बार मिर्जा गालिब से हकीम रजीउद्दीन ने कहा था कि देखिए गधे भी आम नहीं खा रहे तो गालिब ने जवाब हाजिर किया था कि 'गधे' ही आम नहीं खाते। 'भारतेंदु कहा करते थे कि आम खिलाने और कविता लिखने की प्रक्रियाओं में कोई मौलिक अंतर नहीं है क्योंकि आम धरती की कविता है। रवीन्द्र नाथ टैगोर को आमों के मौसम में इंग्लैण्ड में समय बिताना पड़ा तो वह अपनी उम्र एक साल कम बताने लगे थे। कवि कालिदास की रचानाओं में आम प्रतीक बन कर उभरा है। व्याकरणाचार्य पाणिनी ने पुरुषों के लिए 'आम्रगुप्त' और नगरों के लिए 'आम्रपुर' संज्ञाओं का प्रयोग प्रचारित किया। वाल्मीकि रामायण में आम की गुणगाथा में अनेक उक्तियां हैं। जहां महाकवि कालिदास ने आम की बौरी को मदन का बाण कहा है वहीं फल को प्रेम की परिपक्वता का प्रतीक। अंग्रेजी उपन्यासकार ई. एम. फास्टर ने अपने चर्चित उपन्यास 'ए पैसेज टू इंडिया' में भारतीय स्त्रियों के स्तनों की तुलना आम से की हैं। शैव साहित्य में 'लिंग' को 'आम्रकेटश्वर' कहा गया है। बादशाह बाबर आम को हिन्दुस्तान के नाम खुदा का भेजा तोहफा मानता था। ऐसी है आम की महिमा जो अनंत है। दरअसल आम एक ऐसा नायाब फल है जिसके वृक्ष की हर चीज का अनूठा और महत्वपूर्ण उपयोग है। वर्मा और थाईलैण्ड में आम के बौर का सब्जी की तरह उपयोग किया जाता है। जापानी लोग आम की नयी बैंगनी रंग की पत्तियों को चावल के साथ खाते हैं और आम की गुठलियों का दलिया बनाते हैं। आम की लकडियां हवन के काम आती हैं और पत्तियां पूजा-अर्चना के काम आती हैं।
आम के औषधीय गुण भी बहुत हैं। आम का फल डाल से तोड़ते वक्त जो चेप या लसलसा पदार्थ निकलता है वह बिच्छू तथा अन्य विषैले कीड़ों का जहर उतारने की रामबाण औषधि है। आम की गुठली को भून कर बनाया गया पाउडर दस्त की बीमारी में लाभकारी है। आम के वृक्ष की छाल से निकलने वाले रस का सेवन प्रदर तथा रक्त स्राव से पीड़ित महिलाओं को तुरंत राहत पहुंचता है। आम की छाल को उबाल कर बनाये गये काढ़े का गरारा करने से गले और जबड़े में होने वाले दर्द को आराम मिलता है। आम के पत्तों की भस्म जले हुए अंगों पर लगाने से आराम मिलता है। आम के पत्तों धुंआ हिचकी और गले की बीमारी को दूर करता है। आम का तेल पैरों की बिवाई की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आम का पना पीने से लू नहीं लगती तो फिर आम के वृक्ष को कल्पवृक्ष क्यों न कहा जाय।
एक ईरानी ने का था कि आम बेहिश्त का फल है। सचमुच आम और अमृत में वैसी ही समानता है जैसी काम और कैरी में। अमराईयों में कच्ची लट फेरियों की गंध को यदि कामदेव का पांचवां बाण कहा जाता है तो इसके पके भरे आम को अमृत कहना न्यायसंगत है। आयुर्वेद में कुछ रोगियों को केवल आम का आहार ही देकर उन्हें स्वस्थ्य और पुष्ट बनाया जाता है। यह चिकित्सा विधि आम्रकल्प कहलाती है।
आम भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक है। इस फल का सालाना सफर केरल में फरवरी माह से शुरू होता है। इसके बाद रत्नगिरी और बलसाड़ से आम की उस किस्म की महक उड़ने लगती है जिसे पुर्तगालियों ने 'अलफासो' कहा था जो 'हापुस के नाम से विख्यात है। बिना रेशों के इस आम की फसल मई के अंत तक रहती है। मई और जून के महीने में तो तोतापुरी, माल्दा, मलगोआ, गुडप्पा, बादाम जैसी कई किस्में आ जाती हैं। इसी समय मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के कट्टीपाड़ कस्बे का एक से पांच किग्रा. वजनवाला आम गुजरात के अमीरों की सेवा में हाजिर हो जाता है। जून से शुरू होता है मौसम का उतार तब प्रवेश करता है आमों का हीरों यानी बनारस का लंगड़ा आम। बनारस का यह आम देखने में तो हरा होता है मगर इसके हरे रंग में मिठास और खुशबू गजब की होती है। शिव की नगरी के इस आम से कोई आम टक्कर ले सकता है तो वह है अयोध्या का दशहरी आम जो महक और मिठास का नन्हा राजकुमार है। इसके बाद मलिहाबाद का चौसाया सफेदा के नाम से पुकारा जाने वाला आम सितम्बर माह तक रहता है इससे आम का सालाना सफर खत्म होता है।
आम का राजसी नाम 'रसाल' है। अंग्रेजी शब्द के इस मैंगों को समरबेहिश्त किशन भोग, हरदिल अजीज, मिठुवा जैसे आत्मीय और प्यार भरें शब्दों से पकारा जाता है। कहते हैं पांच हजार साल पहले चटगांव की निचली पहाड़ियों में प्रकृति के वरदान के रूप पैदा हुआ।
आम में प्रोटीन की मात्रा 8 फीसदी से कम नहीं होती। इसके सेवन से विटामिन 'ए' और 'सी' की कमी पूरी होती है आम में चीनी 20 से 22 फीसदी होती है। चीन में चीनी को विलेय सांद्र कहते हैं। एक तन्दुरुस्त व्यक्ति के लिए 5 हजार इंटरनेशनल यूनिट विटामिन 'ए' की जरूरत होती है जो आम के सेवन से पूरी हो जाती है। 'स्कर्वी' जैसे रोग में भी आम लाभकारी है। पेरु के आदिवासी आम को इतना महत्व देते हैं कि इसे चूसने के पहले वे नहाकर नये कपड़े पहनते हैं। पुराने जमाने में बनारस के रईस अपने बगीचों में बड़ी एकाग्रता से लंगड़ा आम बोते थे और आम के पेड़ों में गुलाब की पंखुड़ियों की खाद और केवड़ा गुलाबजल डाल कर उसे सींचते थे। ऐसा वाणभट्ट और कालीदास ने कहा है।
अनुमानतः भारत में 500 किस्म के आम होते हैं। उत्तर प्रदेश में काट कर खाने वाले कलमी आम की करीब 300 किस्में हैं। वैसे आमों के लिए बनारस, मलिहाबाद (लखनऊ), रतौल (मेरठ) तथा सहारनपुर विख्यात है। बनारस का लंगड़ा आम तो आस्ट्रेलिर आस्ट्रेलिया, ब्राजील, दक्षिण अमेरीका. चीन, दक्षिण पूर्व एशिया फिलीपाइन तक मशहर है। फलों का राजा कहा जाने वाला आम केवल फल ही नहीं औषधि भी है, इसीलि धार्मिक संस्कारों में आम के पत्ते और लकड़ी तक को महत्व दिया गया है...|