नेताओं की बदजुवानी से तार तार होती राजनीति
हमारे देश की जनता वैसे तो अपने जनप्रतिनिधियों से गरिमापूर्ण व्यवहार की अपेक्षा रखती है। जनता इन्हें इसलिए चुनती है ताकि उनकी समस्याएं सुलझ सकें और उनकी ज़रूरतें पूरी हो सकें लेकिन हमारे जनप्रतिनिधि सार्वजनिक रूप से ऐसा व्यवहार करने लगे है। जो सभ्य समाज और लोकतंत्र के लिएअनुकरणीय नहीं है। खासकर चुनाव आते ही नेताओं की बयानबाजियां शामीन न होकर उनके बिगड़े बोल बन जाती हैं। वर्तमान में नेताओं की बदजुबानी से ऐसा लगता है कि कोई भी राजनैतिक पार्टी यह नहीं सोचती कि अनैतिक भाषा के इस्तेमाल से आम जनता पर क्या असर पड़ता है। नेता लोग तो बस अपने को चर्चित बनाये रखने के लिए ऐसे अर्नगल बयान देते हैं जो उन्हें टीवी पर अपने टीआरपी बढ़ाने, अखबार की सुर्खियां बनने और जनता की तालियां बटोरने तक केंदित होते हैं।
चुनावी बुखार के उन्माद में हमारे नेतागण लगातार एक दूसरे के विरूद्ध ऐसे बेहूदा बयान देते चले आ रहे हैं जिससे न केवल देश का सौहार्द भंग होता है बल्कि ऐसे बयानों से प्रभावित हुई जनता में भी कटुता और दुशमनी बढ़ी दिखलाई देने लगती है। नेताओं के आपत्तिजनक और अपमानजनक बयानों की ये कुछ बानगियां देखकर आप स्वयं अंदाज लगासकते हैं कि नेताओं के बिगड़े बोल आज राजनीति को किस तरह से तार तार करने में लगे हैं।
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक चुनावी सभा में कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भारतीय उसी प्रकार भयभीत हैं जिस प्रकार से फिल्म शोले में डाकू गब्बर सिंह से भयभीत थे। भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह ने कहा कि 60 वर्षीय मायावती जी खुद रोज फेशियल करवाती हैं। उनके बाल पके हुए है व रंगवाकर आज भी अपने आपको जवान साबित करती हैं।
कर्नाटक से कांग्रेस के विधायक वी नारायण राव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नपुंसक करार देते हुए कहा कि जो नपुंसक है वे शादी कर सकते हैं लेकिन बच्चे पैदा नहीं कर सकते। यह ऐसा पीएम है जो झूठ बोलता है।
हरियाणा के शिक्षा मंत्री अनिल विज ने ट्वीट किया कि यदि कांग्रेसियों को चौकीदार से तकलीफ हो रही है तो वे अपने नाम के आगे पप्पू लिख लें। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के अनुसार रामायण गवाह है, कि रावण आया था साधु बनकर मारीच आया था हिरण बनकर कालेकमि आया था ऋषि बनकर और अब चोर आया है चौकीदार बनकर।
आप दिल्ली से ही देखिये यहां पूर्ण राज्य के मुद्दे पर सुबह ट्विटर पर बहस से जो शुरूआत हुई वह शाम तक खानदान पर उठाये गए सवाल तक जा पहुंची। भाजपा का घोषणा पत्र जलाने के कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि बीजेपी के नेता मनोज तिवारी कौन होते हैं, दिल्ली को पूर्ण राज्य से रोकने वाले। तुम कौन हो, तुम्हारे बाप की दिल्ली है? इस पर भाजपा विधायक विजेन्द्र गुप्ता ट्विटर कर जबाव दिया कि केजरीवाल जी, आपकी ओछी हरकतों से पता चलता है कि आप किस खानदान के हैं?
पुलवामा की घटना पर सबूत मांग रही कांग्रेस के जवाब में बसी की एक जनसभा को संबोधित करते हुए भाजपा नेता विनय कटियार के ये अभ्रद बोल कि अगर संभव है तो राहुल गांधी सबूत दें कि राजीव गांधी उनके पिता है। क्या आपत्तिजनक नहीं है? नेताओं के ऐसे बयान आने वाले दिनों में शायक ज्यादा सुने जा सकते हैं। दसरे शब्दों में कहें अनैतिक भाषा का प्रयोग करने में अब कोई भी राजनैतिक पार्टी अछूती दिखलाई नहीं देती जबकि असहमतियां और विरोध शुरू में ही राजनीति के अभिन्न अंग रहे हैं।
पिछले वर्ष दिसम्बर में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान भी कई नेताओं ने जमकर अमर्यादित बयानबाजी की, जो उनके लिए भी परेशानी का सबब बन गई क्योंकि हाथ में स्मार्ट फोन लिए मतदाताओं ने उनके वीडियो बना लिए और वे सोशल मीडिया पर वायरल भी हुए । इस पर चुनाव आयोग ने कुछ मामलों में कारवाई भी की। नेताओं की एसी बदजुबानी जब टीवी पर विस्तार पाती है तो लगता है कि राजनीति के हमाम में सभी नंगे हैं। अब राजनीति में हास्य, व्यंग्य और परिहास की जगह गालियां और अभद्र भाषा ने ले ली है। जब कि पहले के कई कद्दावर नेता ठोस तकों के आधार पर विभिन्न विषयों पर जोरदार तरीके से अपना विरोध जताने के लिए विख्यात थे। संसद और राज्यों की विधानसभाओं तक में ऐसे ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिनके एक एक शब्द को लोग सुनते थे। तब सदन में चर्चा का स्तर भी काफी ऊंचा था। पंडित जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. राम मनोहर लोहिया, तारकेश्वरी सिंहा, इंदिरा गांधी अटल बिहारी वाजपेयी सटीखे कई ऐसे नेता थे जिनके कहे एक एक शब्द की विवेचना होती थी और उनके वैचारिक मतभेदों के बावजूद लोग उनके शालीन व्यवहार से प्रेरणा लेते थे। लेकिन आज कोई राजनीतिज्ञों को सुनने को ही तैयार नहीं है।
राजनीति का इससे भद्दा चेहरा और क्या हो सकता है कि पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर कलेक्ट्रेट के मुख्यमंत्री योगी सरकार के चिकित्सा शिक्षामंत्री आशुतोष टंडन की अगुवाई में जिला कार्य योजना समिति की बैठक चल रही थी कि इसी दौरान वहां सांसद शरद त्रिपाठी और विधायक राकेश सिंह बघेल में शिलापट के नाम पर ऐसी कहासुनी हुई कि सांसद ने विधायक को जूतों से पीट दिया और विधायक ने भी सांसद को थप्पल जड़ दियेदोनों में जुतम-पैजार को यह युद्ध काफी समय तक टीवी और सोशल मीडिया में आनंद को कौतूहल का विषय बना रहा।
मेरा मानना है कि लोकतंत्र लोकलाज से चलता है और मर्यादा व शालीनता से सुगंधित आचरण से महकता है। लेकिन अब लगता है कि नेता लोग भी स्वस्थ आलोचना के बजाया एक दूसरे की टांग घसीटने व निंदा करने में ज्यादा रूचि लेने लगे हैं। उनका ऐसा व्यवहार देखकर तो यही लगता है कि राजनैतिक पार्टियों का उद्देश्य आम आदमी की समस्याओं को हल करना नहीं बल्कि केवल चुनाव जीतना, सरकार बनाना व अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने तक ही सीमित रह गया है। अब आंकड़ों, तथ्यों, सबूतों की बात कोई नेता नहीं करता क्योंकि बेठेगा बोलने वाले नेताओं ने ही सत्ता के लोभ में राजनीति को एक तमाशा बना दिया है।
मैने कुछ चुनावों में देखा है कि तंबे समय तक प्रयार की वजह से नेताओं की लफ्फाजियां बहुत लम्बी खिंच जाती है और विरोध मेमं उनकी भाषा भी बोखलाहट व बदहवासी में बदल जाती है। ऐसे नेताओं की अमर्यादित वाणी और छिछोरी बातें यदि स्तरहीन मीडिया में सुर्खियां पा जाती है तो उन्हें लगता हैकि जैसे उनका तीर निशाने पर लगा है। गंभीर मुद्दों को व्यक्तिगत छीटांकशी से निपटा अच्छे नेता की पहचान नहीं है। बहरहाल भारतीय राजनीति में भाषा की ऐसी गिरावट शायद ही पहले कमी देखी गई हो। नेताओं की नतर्गल बयानबाजी से जो लोग सहमत दिखाई देते हैं उनमें दूसरों के विचारों को सुनने या सहन का संयम खत्म होता दिखलाई देता है। जब कि होना यह चाहिये कि हम दूसरो की थोपी बातों को सुनकर खुद अपनी राय में संशोधन के लिए तैयार रहें और गलत ढंग से पेश की जा रही टिप्पणीयों तथा तकरीरों में अपनी आक्रमकता न दिखलायों।
असहमति का आदर भी हमारे समाज की खूबसूरती है। डॉ राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि अशालीन भाषा का प्रयोग बेचैनी का माहौल पैदा करता है। बदजुवान नेताओं को तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे क्या कह रहे हैं और जनता के बीच उनका कैसा संदेश जा रहा है। लेकिन जनता को चाहिये कि जो नेता अपने भाषणों से समाज में जहर घोलने का काम करे उन्हें अपेक्षा के कूडेदान में फेंक दें। तभी हमारी स्वच्छ राजनीति एक गटर होने से बच जाए।