‘मातृत्व सुख के लिये सजगता जरूरी


महिलाएं गर्भधारण करने के साथ ही सुख और आने वाले भविष्य के सपने देखना शुरू कर देतीं हैं। अत्यधिक खुशी के इस क्षण को और अधिक खुशनुमा बनाने का प्रयास करती हैं, पर यही खुशी गर्भधारण संबंधी जानकारी का अभाव उनके लिए परेशानी पैदा कर सकती है। इस दौरान मां बनने के लिए हर वह उपाय करने चाहिए जो जच्चा-बच्चा के हित में लाभदायी हो। व्यर्थ के प्रयास नहीं करना चाहिए। कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान रक्तस्राव होने लगता है, इसे ही स्वाभाविक एबार्शन कहते हैं। डॉ. के अनुसार शुरू के कुछ महीनों में ही ज्यादा परेशानी, होती है क्योंकि यह पहला–पहला अनुभव होता है और अधकचरे ज्ञान से ही उन्हें परेशानी उठानी पड़ती है। शुरू-शुरू के एक-दो महीनों में जी मिचलाना और उल्टियां सामान्य बात है। कुछ महिलाओं को गर्भधारण करने की समस्याएं भी होती हैं। गर्भ ठहरने में भी कई दिक्कतें आती हैं। इसकी वजह यह भी है कि |सब कुछ ठीक होते हुए भी स्वास्थ संबंधी जानकारी उन्हें कम होती है। इसके लिए जानकार से निःसंकोच जानकारी प्राप्त करना उचित है। गर्भ न रूकने की परेशानी से घबराना नहीं चाहिए, अगर कुछ सावधानी बरती जाए, तो परेशानी दूर हो सकती है। इसका मुख्य कारण शरीर के कुछ हार्मोन के सक्रिय होने से एलर्जी, । इम्यूनोलॉजिकल भी हो सकता है। परेशानी की वजह शारीरिक तो होती हैं दूसरी महिलाओं से निपूती, निःसंतान, बॉझिन–निरबंसिन आदि शब्द सुन-सुनकर गर्भधारण करने वाली महिला पर मनोवैज्ञानिक गलत असर भी पड़ता है। ऐसी अवस्था में जानकार से परामर्श लेना ही चाहिए। इस दौरान महिलाएं ग्लूकोज भी ले सकती हैं। इसके अलावा जो जच्चे-बच्चे के बारे में अनुभवी जानकारी रखता हो उससे सलाह भी लेनी चाहिए क्योंकि वह साधारण रीतियों उपायों और चिकित्सा से आपको इस परेशानी से मुक्त करा सकते हैं। इस अवस्था में खून की कमी हो जाती है जिसे 'एनीमिया' भी कहते हैं। अधिकतर महिलाएं एनीमिक हो जाती हैं और उनका सारा शरीर पीला पड़ने लगता है। इसका मुख्य कारण उल्टी या दस्त, खाने-पीने में प्रचुर खाद्य पदार्थों की कमी एवं पेट में कृमि होने की वजह से होता है। इसके अलावा पहले से ही मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव होना एवं कभी-कभी दस्त के साथ खून आना भी हो सकता है। इसका उपचार बहुत आवश्यक है, क्योंकि इससे आगे जाकर परेशानी और भी बढ़ने की संभावना रहती है। संतुलित आहार, पत्तेदार सब्जियों का सेवन, फल आदि लेना चाहिए। डॉ. का यह भी कहना है कि इस अवस्था में महिलाएं कई बार यह सोंचती हैं कि उन्हें हर चीज नहीं खानी चाहिए और लोगों में तो भी प्रचलित है कि गर्भावस्था के दौरान जो चीज खाने की इच्छा हो वह उसे तुरंत देना चाहिए, अन्यथा बच्चे की इच्छा अधूरी रह जाती है। इसलिए खट्टी मीठी चीजें समय-असमय महिलाएं खाती रहती हैं। बार-बार पेशाब लगना, खुजली हो जाना और मोटापा बढ़ते जाना गर्भधारण के लिए हानिकारक है। शरीर की आवश्यकता के अ न स । र खान-पान जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान पेशाब के भी कई रोग हो सकते हैं। गर्भावस्था के दबाव के कारण पेशाब का रोग हो जाता है । पेशाब में जलन होती है, गंध आने लगती हैऔर बुखार, चढ़ आता है। इसके उपचार के लिए सफाई रखना अत्यंत आवश्यक है। अधिक पानी पीना चाहिए शारीरिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। शरीर संबंधी समस्याओं को अपने हितैषी से न छुपाएं। ताकि यह उपचार करा सके। इसके अलावा पेशाब से संबंधित एक और बीमारी है जिसे सर्वाइटिक्स और वेजाइनस कहते हैं, इसमें पेशाब से सफेद हल्का पीला पानी आने लगता है। किसी-किसी को सफेद दही जैसा पदार्थ समय-समय पर निकलता रहता है। यह परेशानी अविवाहित लड़कियों को भी हो सकती है। जिन अविवाहित लड़कियों को यह परेशानी होती है उनके मन में डर बैठा रहता है कि शायद इस परेशानी से हम गर्भधारण नहीं कर पायेंगी, मगर ऐसी कोई बात नहीं है। यह ठीक हो जाता हैं। इसके इलाज के लिए सफाई बहुत जरूरी हैसाथ ही कुछ दिन नियमित दवाई से जल्दी ठीक हो जाता है। कभी-कभी गर्भावस्था के दौरान रक्तस्राव होने लगता है, इसे ही स्वाभाविक एबार्शन कहते हैं। एबार्शन कई प्रकार से हो सकता है। इसका मुख्य कारण खसरा और वाइस इन्फेक्शन होता है। अगर समय पर उचित उपाय किया जाए तो बच्चा ठहर सकता हैअसामान्य एबार्शन में बच्चा गिर जाता है। पर पहली बार गर्भधारण के बाद ही अगर एबार्शन हो जाए तो यह नहीं सोचना चाहिए कि अब वह कभी मां नहीं बन पायेंगी। ऐसा बिल्कुल नहीं है, उचित इलाज और सावधानी से पुनः मां बनने का सुख पाया जा सकता है। ये सारे लक्षण और बीमारी गर्भावस्था के दौरान हो सकती हैं। मगर इन बीमारियों को छोड़ कई महिलाओं को पहले से कई बीमारी रहती है। इन बीमारियों की गर्भावस्था के दौरान और अधिक बढ़ने की आशंका रहती हैं। इनमें गुर्दा रोग, ब्लडप्रेशर, रयूमेटिक हार्ट डीसीज (दिल की बीमारी), मिरगी के दौरे, मधुमेह, सांस की बीमारी और खून की इलाज के लिए डाक्टरी जांच आवश्यक है। डाक्टर द्वारा बतायी गयी दवाईयों को बराबर लेते रहना चाहिए। साथ ही साथ परहेज और सावधानी भी आवश्यक है, इन बातों पर अमल न करने से प्रसव के दौरान खतरा बढ़ जाता है। मातृत्व का एहसास एक नारी के लिएबहुत ही मधुर और रोमांचित कर देने वाला है और हर नारी इसे पाने के लिए लालायित रहती है। जगह-जगह स्वास्थ्य केन्द्रों का लाभ उठाते हुए गर्भधारण से लेकर मां बनने तक थोड़ी जानकारी बड़ी सजगता रखकर भविष्य के सपने संजोया जाए तो निश्चित ही वह सुंदर और सुखकारी होंगे।