आथ्राइटिस
सर्दियों में होने वाला 'आथ्राइटिस' बेहद कष्टकारी रोग है। इससे जुड़ी अनेक गलत धारणा, समाज में प्रचलित हैं। इस रोग से बचाव व उपचार की जानकारी दे रहे हैं डा0 राकेश सेंगर मानव शरीर को न जाने कब आकर बीमारियाँ जकड़ लें, यह किसी को मालूम नहीं। ये बीमारियाँ बाहरी अथवा आंतरिक किसी भी प्रकार की हो सकती हैं। शरीर को सर्दियों में हिला देने वाला ऐसा ही रोग आथ्राइटिस है। इसके कारण जोड़ों में होने वाले शोथ या जलन से लोग परेशान हो जाते हैं। आमतौर पर आथ्राइटिस के विषय में अनेक गलत धारणाएं प्रचलित हैं। मुख्यतः रोग के विषय में पूरी जानकारी न होने के कारण शरीर में हड्डियों या मांसपेशियों में होने वाले हर प्रकार के दर्द को लोग आथ्राइटिस मान लेते हैं, परंतु वास्तव में ऐसा नहीं होता है। शरीर के जोड़ों में आवश्यकता से अधिक मात्रा में अम्ल के स्राव के कारण जोड़ों की श्लेष्म (सिनोवियम) नामक अंतरी परत में प्रदाह या जलन प्रारंभ हो जाती है। इससे शरीर में सूजन, दर्द और जोड़ों के अकड़ने के साथ ही ज्वर, कमजोरी और खून की कमी भी होने लगती है, क्योंकि इस प्रकार के लक्षण किसी अन्य बीमारी की ओर भी इशारा कर सकते हैं, इसलिए रोग को आथ्राइटिस मानने से पहले पूर्ण जाँच की आवश्यकता होती है। आथ्राइटिस रोग के कारण शरीर में केवल घुटने के जोड़ ही नहीं, बल्कि कई अन्य अंग भी प्रभावित होते हैं। रयूमेटोएड आथ्राइटिस या गठिया से शरीर में 102 डिग्री फॉरेनहाइट से 106 डिग्री फारेनहाइट तक ज्वर के साथ मांसपेशियों में कमजोरी, अधिक दर्द, गले की । खराबी, अवसन्नता जैसे लक्षण उभरकर आते हैं। इसके साथ ही कम मात्रा में मूत्र स्राव और मूत्र का रंगीन होना भी देखा गया है। अधिक ज्वर के कारण रोगी की हृदय गति भी कम होने लगती है। अनेक बार आथ्राइटिस में शरीर की मांसपेशियां प्रभावित हो जाती हैं। इससे मांसपेशियों में दर्द और अकड़न के साथ ही ज्वर का होना आम बात है। इस रोग का एक और रूप हैं, आनुवंशिक कारणों से संरचनात्मक आथ्राइटिस। जीवन काल में अधिक शराब का सेवन, सीसे से होने वाले संक्रमण या उपायचयी (मेटोवोलिक) अनियमितता के कारण शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है। पैरों में एड़ी, पंजों, घुटनों, हाथ के ऊपरी हिस्सों और कलाई को प्रभावित करने के साथ ही रोग से शरीर में रक्त धमनियों हृदय, गुर्दो और फेफड़ों का क्षय आरंभ हो जाता है। आथ्राइटिस के इन प्रकारों के अलावा अन्य कई तरह के लक्षण दिखाई पड़ सकते हैं। आथ्राइटिस की विभिन्न प्रकार की इलाज पद्धतियों और दवाओं के बाद भी इस रोग को जड़ से समाप्त करने के लिए अभी कोई अचूक दवा मौजूद नहीं है। इस विषय पर राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान कार्य चल रहा है। अभी इसका इलाज स्टीरोयड से कियाजाता है। पिछले चालीस वर्षों से ही यही एकमात्र सबसे प्रभावशाली इलाज माना गया है, परंतु अधिक मात्रा में स्टीरोयड के उपयोग के अनेक खतरनाक दुष्प्रभाव भी होते हैं, जिनसे रोगी की । कठिनाइयाँ बढ़ जाती हैं। ब्रिटेन के डॉ० जान किरवान और डॉ० मार्गरेट वायरन ने हाल ही में कम मात्रा में स्टीरोयड देकर आथ्राइटिस के इलाज की विधि का विकास किया है। स्टीरोयड के एक वर्ग कोर्टिको स्टीरोयड को 128 इच्छुक रोगियों में काफी कम मात्रा में दिया गया। इन सभी रोगियों में रोग प्रांरभिक चरणों में ही था। इनमें से आधे रोगियों को प्रतिदिन स्टीरोयड की एक-एक गोली दी गई, जिससे शरीर में प्राकृतिक स्टीरोयड का उत्पादन दोगुना हो गया। बाकी रोगियों को बिना स्टीरोयड वाली खाली गोलियाँ दी गई। करीब दो वर्षों तक इन सभी रोगियों की जाँच की गई। जिन रोगियों को कम मात्रा में स्टीरोयड दिए गए थे, उनमें काफी हद तक रोग नियंत्रण में थाअब वैज्ञानिकों का मानना है कि कम मात्रा में स्टीरोयड से बनी दवा से इस रोग को नियंत्रित किया जा सकेगा। गठिया रोग में जोड़ों की हड्डी से सिरों पर उत्पन्न सख्त व सफेद रंग के कोलैजन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। यह कोलैजन शरीर में पाए जाने वाले सामान्य कोलेजन से बिल्कुल भिन्न होता है। इसके अतिरिक्त सामान्य कोलेजन के विपरीत टाइप-2 कोलेजन आमतौर पर हम अपने भोजन में नहीं पाते हैं। इस रोग से निजात पाने के लिए आयुर्वेदिक दवाइयाँ भी काफी प्रचलित हैं, जिनको खाने से इस रोग से काफी हद तक छुटकारा मिल जाता है। इन दवाइयों के सेवन की काफी दिनों तक आवश्यकता होती है। इसके मरीज को दूध, पनीर या मांस-मछली लेते रहने से रोकथाम हो जाती है। नियमित व्यायाम और प्रातः भ्रमण की आदत बना, रखनी चाहिए। इससे शरीर पर सूर्य की किरणें पड़ती रहेंगी और विटामिन-डी पर्याप्त मात्रा में शरीर में बनेगा।